याे बेहदकाे कुरा हाे : एक काव्यिक चिन्तन (कविता) । 'रचना' पूर्णाङ्क १९४, वैशाख-जेठ अङ्क, २०८२ मा प्रकाशित कविता
धारणा सिर्जना हाे
धारणा सिर्जनाकाे लय हाे
धारणा सिर्जनाकाे शक्ति हाे
धारणा घाम हाे
धारणा धाम हाे
धारणा- उपराम वृत्ति हाे
याे धारणाकाे कुरा हाे
याे सृष्टि, याे जीवन, याे ज्ञान धारणाकाे कुरा हाे
(धारणाकाे बगैँचामा फुल्ने गर्दछन् जीवनका अलाैकिक पुष्पहरू)
भाग्य कर्म हाे
भाग्य गति हाे
भाग्य लगन हाे
भाग्य राप हाे
भाग्य ताप हाे
भाग्य- पसिनाकाे प्राप्ति हाे
याे भाग्यकाे कुरा हाे
याे सृष्टि, याे जीवन, याे ज्ञान भाग्यकाे कुरा हाे
(भाग्यका ताराहरू कुदिइरहन्छन् तिम्राे जीवनकाे अाकाशका बाटाभरि)
ड्रामा लय हाे
ड्रामा मञ्चन हाे
ड्रामा स्वकाे कीर्तन हाे
ड्रामा यात्रा हाे
ड्रामा मात्रा हाे
ड्रामा- निरन्तरताकाे गतिशीलता हाे
याे ड्रामाकाे कुरा हाे
याे सृष्टि, याे जीवन, याे ज्ञान ड्रामाकाे कुरा हाे
(ड्रामाका पातहरू यसरी एक-एकगरी मञ्चमा खस्दछन् जसरी खस्दछन् शक्तिका प्रकाशहरू अात्माभरि)
प्राप्ति निष्कर्ष हाे
प्राप्ति समझ हाे
प्राप्ति गहिराइकाे प्रतिविम्ब हाे
प्राप्ति सम्मान हाे
प्राप्ति स्वमान हाे
प्राप्ति- मानकाे माला हाे
याे प्राप्तिकाे कुरा हाे
याे सृष्टि, याे जीवन, याे ज्ञान प्राप्तिकाे कुरा हाे
(प्राप्तिकाे इन्द्रेणी तिम्राे जीवनकाे मुस्कान हाे)
बेहद स्वतन्त्रता हाे
बेहद साैन्दर्य हाे
बेहद अनन्त बाटाे हाे
बेहद प्रीत हाे
बेहद अमृत हाे
बेहद- अव्यक्त स्थिति हाे
याे बेहदकाे कुरा हाे
याे सृष्टि, याे जीवन, याे ज्ञान बेहदकाे कुरा हाे ।
(बेहदका रङहरू पुतलीजसरी उडिरहन्छन् तिम्राे जीवनभरि)
© बिकेश कविन
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